पंतनगर। 25 मई, 2011। विष्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के सभागार में लीची उत्पादन में प्लास्टिक कल्चर की उपयोगिता पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय कार्यषाला आज सम्पन्न हुई। इस अवसर पर निदेषक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी., लीची), मुज्जफरपुर, बिहार, डा. विषाल नाथ पाण्डे; विभागाध्यक्ष, औद्यानिकी, डा. आर.एल. लाल; वैज्ञानिक, एन.आर.सी., लीची, बिहार, डा. एस.डी. पाण्डे; के साथ-साथ परियोजनाधिकारी एवं वैज्ञानिक, परिषुद्ध खेती विकास केन्द्र (पीएफडीसी), डा. सी.पी. सिंह, डा. पी.के. सिंह एवं डा. गंगा जोषी तथा प्रगतिषील कृषक उपस्थित थे।
डा. पाण्डे ने अन्तिम सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि लीची की मिठास का आनन्द अधिकाधिक लोग ले सकें इसके लिए किसानों तथा वैज्ञानिकों को मिलकर बागानों में प्रबन्धन बेहतर करना होगा। उन्होंने कहा कि लीची एक ऐसा फल है जिसे देर तक भण्डारित नहीं किया जा सकता और उसे कच्चा भी नहीं तोड़ा जा सकता। वैज्ञानिक इसके देर तक भण्डारण तथा प्रस्संकरण के लिए कार्य कर रहे है ताकि आम आदमी तक लीची तथा उसके उत्पाद पहुंचाये जा सकंे।
इस सत्र में डा. एस.डी. पाण्डे ने पौध रोपण तथा लीची के बागों में छत्र प्रबंधन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि लीची के बाग अच्छे फल तभी दे सकते है जब शुरूआत से ही उनकी सही देखभाल की जाय। उनके अनुसार लीची में छत्र प्रबंधन से हम गुणवत्तायुक्त और स्वस्थ फसल ले सकते हैं।
डा. आर.एल. लाल ने लीची की उचित किस्मों के चयन व उनकी समुचित देखभाल पर अपनी बात रखी। इस अवसर पर वैज्ञानिकों ने लीची में फल लगने की प्रक्रिया तथा पोषक तत्व प्रबंधन पर भी विस्तृत जानकारियां दीं। मंचासीन वैज्ञानिकों ने प्रगतिषील किसानों के प्रष्नों के उत्तर भी दिये। डा. पाण्डे ने विष्वविद्यालय के पत्थरचट्टा स्थित नर्सरी तथा फल बागानों का भ्रमण भी किया।
बुधवार, 25 मई 2011
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