रविवार, 23 जनवरी 2011

दिन में 4 घंटे पढ़ने और लिखने के लिए मेरे फिक्स हैं

कई मित्रों ने मुझसे पूछ लिया कि इतने सारे कामों को कैसे मैनेज करते हो वह भी अकेले। हालांकि मुझे स्वयं भी पता नहीं पर फिर भी हो ही जाते हैं।
प्रति सप्ताह का फिक्स कार्यक्रम हैं। प्रति दिन प्रति घंटा फिक्स है कि कौन से समय में कौन सा काम उचित हो सकता है। मान लो मैंने पड़ना भी है लिखना भी है। साथ में ऑन लाईन भी रहना है और सबसे अधिक जरूरी अपने बिजनैस को भी देखना है। ऐसे में हालांकि काफी मेहनत करनी पड़ती है पर इसे मैनेज कर ही लेता हूं। इसके अलावा सामाजिक कार्यों के लिए जो समय फिक्स कर रखा है वह भी जरूरी है। पूरे दिन में 24 घंटों को मैनेज करना एक सबसे अच्छी कला है। कई बार तनाव भी होता है दिमाग में पर सभी परिस्थितियों को पार पा कर ही सब कुछ कर पाना संभव है। आज मैं पढ़ने संबंधी बात करता हूं कि 4 घंटे मैंने पढ़ने और लिखने को दे रखे हैं। मैं लगभग 2 घंटे पढ़ने के बाद लिखता जरूर हूं और वह भी उसी से संबंधित जो मैं पढ़ रहा होता हूं हां इक्का दुक्का बात अनुभव की स्वयं ही लिखी जाती है। फिर मैं एक घंटा पढ़ता हूं तो उसके बाद जो कुछ लिखना चाहता हूं वह लिख लेता हूं।
यह पढ़ाई चाहे मेरे सिलेबस से संबंधित हो या फिर समाज से संबंधित या किसी भी पत्रिका समाचार पत्र की चर्चा परिचर्चा हो आज इतना ही क्योंकि अब मुझे एक घंटा लायबरेरी के लिए चाहिये जो मेरे घर के अन्दर ही मौजूद है और इसमें काफी पुस्तकें हैं। इन दिनों शांतिकुंज की पुस्तकों के साथ साथ टूरिज़्म से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन चल रहा है। जबकि उत्तराखण्ड से संबंधित पत्रिकायों और ऑनलाईन आर्टीकल का अध्ययन भी जारी है।

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