भाजपा को यृं तो मतबूत सांगठनिक नेटवर्क की पार्टी माना जाता है लेकिन उत्तराखंड के संदर्भ में यह विडंबना रही है कि यहां राज्य गठन के तुरंत बाद से ही भाजपा अलग-अलग ध्रुवों में बंट गई। पार्टी के अंदरूनी मतभेदों का आलम यह रहा कि एक साल के भीतर ही राज्य के पहले और तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को कुर्सी गंवानी पड़ी। स्वामी के बाद मुख्यमंत्री बने भगत सिंह कोश्यारी लेकिन अंतरिम सरकार के लगभग सवा साल का कार्यकाल पूर्ण करने के बाद कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। माना गया कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के श्रेय के बावजूद पार्टी के अंतर्कलह के कारण जनमत ने भाजपा को नकारा।
भाजपा ने इससे भी सबक नहीं लिया क्योंकि वर्ष 2007 में जब पार्टी फिर सत्ता में आई तो अंतरिम सरकार के दौरान की कहानी दोहराई जाने लगी। आलाकमान ने पूर्व केंद्रीय मंत्री मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी को राज्य की कमान सौंपी तो पार्टी में धड़ेबाजी के कारण उन्हें लगभग सवा दो साल में ही मुख्यमंत्री पद से रुखसत होना पड़ा। खंडूड़ी के उत्तराधिकारी के रूप में मुख्यमंत्री बने डा. रमेश पोखरियाल निशंक। उस समय लगा कि प्रदेश भाजपा में स्थिरता आएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। डा. निशंक को अपने अब तक के लगभग दो साल के कार्यकाल में पार्टी के भीतर तमाम तरह की चुनौतियों से रूबरू होना पड़ा और यह स्थिति अब भी कायम है।
अब क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव निकट हैं तो आलाकमान ने पार्टी के अंदरूनी मतभेदों को चुनावी संभावनाओं के लिहाज से खतरनाक मान सभी दिग्गजों को एक साथ लाने की पहल की है। एक महीने की जन आशीर्वाद यात्रा में कोश्यारी, खंडूड़ी और निशंक साथ-साथ चलेंगे। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के मूुताबिक मौजूदा सीएम व दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा प्रदेश अध्यक्ष व कई पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के साथ ही संगठन के वरिष्ठ लोग इसमें शिरकत करेंगे।
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